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कानपुर की होली अपने आप में बड़ी अनूठी होती है. जो नगर में होली और होलिका दहन वाले दिन से शुरू होकर गंगा मेला तक चलती है. गंगा मेला का यह नजारा सिर्फ कानपुर में ही देखा जा सकता है. करीब एक हफ्ते तक शहर में लगातार रंग खेला जाता है. वहीं कानपुर में गंगा मेला आजादी के दीवानों की याद में मनाया जाता है. लोगों की मानें तो जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन चरम सीमा पर था तब सन 1942 में ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन जिलाधिकारी कानपुर ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन हटिया इलाके के नव युवकों ने तय किया कि होली उनका धार्मिक त्योहार है ।
क्रांतिकारियों की धरती कही जाने वाली बिठूर में गंगा दशहरा के दिन का नजारा कुछ अलग ही दिखा। लोग गंगा दशहरा को स्नान कर मां गंगा से परिवार की सुख शांति मांगते हैं। वहीं कानपुर में गंगा दशहरा के अवसर पर बिठूर के अलावा ब्रह्मावर्त घाट, पत्थर घाट, सीता घाट पर तांत्रिकों का जमावड़ा लगता है। गंगा दशहरा के अवसर पर सबसे बड़ा अंधविश्वास का मेला बिठूर में ही देखने को मिलता है। इस दिन कानपुर शहर के लोग बिठूर में गंगा स्नान और पूजा-पाठ करने कम ही आते हैं लेकिन आसपास के जिलों उन्नाव, जालौन, उरई, बांदा, फतेहपुर, कानपुर देहात, हमीरपुर आदि के हजारों लोग यहां आते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा को दुर्वासा आश्रम मेला के बाद कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सेंगुर नदी किनारे स्थित परचंदा बाबा का मेला आयोजित होता है। बताया जाता है कि मेला पूर्वजों से लगता चला आ रहा है। मान्यता भी है कि ऋषि दुर्वासा सेंगुर में गंगा को लाए थे, जोकि निगोही दुर्वासा आश्रम से परचंदाबाबा आश्रम तक गंगा का जल है। संत और पुजारी पूजा अर्चना करते रहते हैं। स्थानीय जनपद के अलावा कानपुर नगर, जालौन, झांसी, हमीरपुर सहित जनपदों के लोग मेले में दर्शन, पूजन व चढ़ावा लेकर आते हैं।
कानपुर में शारदीय नवरात्र के मौके पर सबसे बड़े मेले का आयोजन होता है। इन दिनों यह मेला पिकिनिक स्पॉट में तब्दील हो जाता है। मेले का लुफ्त उठाने के बच्चे अपने पैरेंट्स के साथ जाते है और खूब मेले का लुफ्त उठाते है। इस मेले की खास बात यह है कि हस्त निर्मित खिलौने की बाढ़ सी आ जाती है। बच्चे इन खिलौने को खरीते है जिससे यहां पर आये दुकानदार भी मोटी कमाई करते है।